नई दिल्ली। रेल बजट की घोषणाओं के अनुरूप रेलवे बोर्ड में
ढांचागत पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हो गई है तथा बोर्ड को पेशेवराना
स्वरूप देने के लिए क्रॉस-फंक्शनल निदेशालयों के गठन का काम आरंभ हो गया
है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि प्रभु ने
भारतीय रेलवे के पुनर्गठन का काम शुरू कर दिया है। नए रेलवे बोर्ड में अब
सदस्य (इंजीनियरिंग), सदस्य (इलेक्ट्रिकल्स), सदस्य (मैकेनिकल), सदस्य
(स्टाफ), सदस्य (यातायात) एवं वित्त आयुक्त की जगह अब सदस्य
(इंफ्रास्ट्रक्चर), सदस्य (रोलिंग स्टॉक), सदस्य (पैसेंजर बिजनेस), सदस्य
(फ्रेट बिजनेस), सदस्य (मानव संसाधन) और सदस्य (वित्त) होंगे।
सूत्रों ने बताया कि रेलवे में इस समय
विभिन्न सेवाओं के लिए 14 अलग-अलग संवर्गों को संयोजित करके 3 या 4 कैडर
बनाए जाएंगे। इसके साथ रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष को मुख्य कार्यकारी अधिकारी
(सीईओ) के समकक्ष अधिकार संपन्न बनाया जाएगा।
रेलवे बोर्ड ने गत सप्ताह अपने अधीन सभी
उत्पादन इकाइयों के महाप्रबंधकों और सार्वजनिक उपक्रम (पीएसयू) के प्रबंध
निदेशकों को सीधे अध्यक्ष को रिपोर्ट करने के निर्देश जारी कर दिए हैं।
वर्तमान में उत्पादन इकाइयों और पीएसयू के
प्रमुखों को बोर्ड में संबंधित सदस्यों को रिपोर्ट करना होता है। इससे
अध्यक्ष अब सदस्यों से एक दर्जा ऊपर हो जाएंगे। अभी तक रेलवे बोर्ड के
अध्यक्ष बोर्ड के सदस्यों में वरिष्ठतम लेकिन समकक्ष होता है।
सूत्रों ने बताया कि रेलवे बोर्ड ने क्रॉस
फंक्शनल निदेशालय के गठन की प्रक्रिया की शुरुआत में सबसे पहले सिग्नल एवं
दूरसंचार को ढांचागत सुविधाओं से एकरूप करते हुए उसे सदस्य इंजीनियरिंग के
अधीन लाया है। गत सप्ताह इस संबंध में आदेश जारी कर दिए गए हैं।
रेल मंत्रालय में उच्च पदस्थ सूत्रों के
अनुसार रेलवे का वर्तमान प्रबंधन ढांचा 150 साल पुराना है, जो उस समय की
आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था और वह प्रणाली वर्तमान की
चुनौतियों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। इसीलिए बोर्ड को पेशेवराना
बनाने एवं उसके 21वीं सदी के अनुरूप कायाकल्प करने के उद्देश्य से नया
ढांचा सोचा गया है।
सूत्रों के अनुसार रेलवे के नए उद्देश्य
प्रमुख रूप से गैर रेलवे राजस्व बढ़ाना, ढांचागत विकास पर जोर देना और
रेलवे की सुविधाओं और गति को तेज करना है। नए रेलवे बोर्ड के बनने से
परियोजनाओं का क्रियान्वयन तेजी से शुरू होगा।
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि सदस्य
(इंफ्रास्ट्रक्चर) के अधीन रेलवे ट्रैक, सिग्नल एवं दूरसंचार तथा ओवरहेड
विद्युत तारों को लिया गया है। इसी प्रकार से रोलिंग स्टॉक के अधीन यात्री
एवं मालगाड़ियों का पूरा परिचालन एवं संबंधित विषय आएंगे। इस प्रकार
गाड़ियों की गति बढ़ाने के लिए सदस्य इंफ्रा को इंतजाम दुरुस्त करना होगा
और सदस्य रोलिंग स्टॉक को आगे का काम करना होगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुरू से मानना है कि भारतीय रेल का
इतना विशाल ढांचा यदि आधुनिकीकृत कर दिया जाए तो देश की अर्थव्यवस्था की
गति बहुत तेज की जा सकती है। मोदी ने हाल ही में बिहार में गंगा नदी पर रेल
पुलों को उद्घाटन करते हुए अपनी इसी सोच को दोहराते हुए कहा था कि हमारे
देश में रेल बहुत पुरानी है, लेकिन रेलवे को हम अब पुरानी रहने देंगे तो
रेल बोझ बन जाएगी।
मोदी ने इसके लिए नई सोच एवं पेशेवराना
दक्षता के लिए प्रसिद्ध प्रभु को रेलमंत्री बनाया। प्रभु ने आते ही सबसे
पहले रेलवे के विभिन्न पहलुओं पर रेलवे के ही अधिकारियों की अलग-अलग पहलुओं
पर समितियां बनाईं और तय समय में रिपोर्ट लीं।
इसके समानांतर डॉ. विवेक देबरॉय उच्चाधिकार
समिति और रतन टाटा की अगुवाई वाली कायाकल्प परिषद ने भी काम शुरू किया। इस
परिषद के माध्यम से कर्मचारी यूनियनों को परिवर्तन की पहल से जोड़ा गया।
प्रभु ने दो रेल बजट पेश किए और यात्री
किरायों एवं मालभाड़ों तथा नई गाड़ियों के लोक-लुभावन की नीति को तिलांजलि
देते हुए रेलवे के क्षमतावृद्धि पर ध्यान केंद्रित किया और 5 साल में रेलवे
के कायाकल्प के प्रथम चरण में 8.50 लाख करोड़ रुपए के निवेश की
महत्वाकांक्षी योजना पेश की।
दोहरीकरण, तीसरी और चौथी लाइनों के
निर्माण, फ्रेट कॉरिडोर, विदेशों से रेलवे की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के
समझौतों पर जोर देकर उन्होंने रेल के विकास की पटरी बिछाई और गैर रेल
गतिविधियों से राजस्व को 2-3 फीसदी से बढ़ाकर 15 फीसदी तक बढ़ाने की मंजिल
निर्धारित की।
सोशल मीडिया के माध्यम से प्रभु ने यात्री
सेवाओं को नया आयाम दिया। इससे सेवाओं में सुधार आया, जवाबदेही तय हुई और
यात्रियों से सीधे संवाद के कारण रेलकर्मी अनुशासित हुए। (वार्ता)
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